Friday, February 17, 2023

"मन ! "

बेख़ौफ़ सुहाना मंजर है,  
खामौशी बहार अंदर है | 

खामोश खामोशी चुभती है, 
मन में पीड़ा जब रहती है | 
मन ही मन में वह कहती है, 
रग लहू संग वह बहती है | 

मन मादक मंद सुगंध सही, 
पर वह मन ही को हरता है| 
मन पंक्षी के पर पर ही सही , 
पर ऊंची उड़ान तो भरता है |

मन बादल है मन पंक्षी है , 
मन राग रंग और बंशी है | 
मन आज भी है, मन कल भी सही 
पर मन की पीड़ा मन ही में रही 

मन द्वेष भी है मन राग भी है ,
मन व्याकुल , पीड़ा वैराग भी है | 
मन संग क्रीड़ा जो करता है , 
मन ही मन का वह रहता है | 
 
मन संयम है, संकोच भी है, 
मन लज़्ज़ा है , खामोश भी है | 
मन ही मन के गर वश में रहे , 
मन साधना है , मन सोच भी है |