खामौशी बहार अंदर है |
खामोश खामोशी चुभती है,
मन में पीड़ा जब रहती है |
मन ही मन में वह कहती है,
रग लहू संग वह बहती है |
मन मादक मंद सुगंध सही,
पर वह मन ही को हरता है|
मन पंक्षी के पर पर ही सही ,
पर ऊंची उड़ान तो भरता है |
मन बादल है मन पंक्षी है ,
मन राग रंग और बंशी है |
मन आज भी है, मन कल भी सही
पर मन की पीड़ा मन ही में रही
मन द्वेष भी है मन राग भी है ,
मन व्याकुल , पीड़ा वैराग भी है |
मन संग क्रीड़ा जो करता है ,
मन ही मन का वह रहता है |
मन संयम है, संकोच भी है,
मन लज़्ज़ा है , खामोश भी है |
मन ही मन के गर वश में रहे ,
मन साधना है , मन सोच भी है |